Page 434 - SLDP CASE STUDIES 2019-20, MIEPA
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बशक्षा और सिंस्कृती शाबददक ऱूप से दो अलग अलग सिंक्पना हैं। बशक्षा आजी न चलने  ाली प्रबकया हैं। व्यक्ती जन्म से मृत्यू तक
               बनरिंतर बशक्षा लेता रहता हैं। बशक्षा क े दो रुप हैं - १) औपचाररक बशक्षा २) अनौपचाररक बशक्षा

                        औपचाररक बशक्षा एक बनबित पाठ्यक्रम और सुबनयोबजत बशक्षकों बदया जाता हैं। परिंतु अनौपचाररक बशक्षा घर, परर ार, समाज से
               ग्रहण करता हैं।

                       बकसी भी देश की रीबतरर ाज, धमा, परिंपरा, सिंस्कार आदी को सिंस्कृबत कहते हैं। बशक्षा में सिंस्कृती क े पहलुओिं को शाबमल बकया जाता
               हैं। बकसी भी देश क े शैक्षबणक बनबतयों क े बनधाारण में सािंस्कृबतक बबिंदुओिं का समा ेश बकया जाता हैं। बशक्षा और सिंस्कृती का बमबित रुप ही बकसी
               भी देश क े ब कास क े बलए अपररहाया हैं। बकसी भी देश क े सािंस्कृबतक ब रासत को देखके  उसकी समृबि और उसकी ब शालता का पता चलता हैं।

                       बशक्षा और सिंस्कृबत एक ही बसक्के  क े दो पहलू हैं। भारतीय बशक्षा प्रणाली में हमेशा अपनी सिंस्कृती को महत् पूणा स्थान  हैं। भारतीय
               सिंस्कृती ने हमेशा शैक्षबणक और उससे सिंबिंबधत सिंस्थानों को ब द्या मिंबदर का सन्मानजन्य स्थान बदया हैं| बशक्षा एक आजी न चलने  ाली प्रबकया
               हैं बजसके  द्वारा हम काया और ब चार की नई पध्दबतयाूँ सीखते रहते हैं। और इसी से हमारी सिंस्कृती को फलने-फ ु लने का सु-अ सर बमलता है।
               बशक्षा और सिंस्कृती का मुल उद्देश व्यबक्तत्  का समग्र ब कास हैं। सिंस्कृती सिंरचना एक बदन में न होकर शताददी ओिं की साधना का सुपरीणाम हैं।
                तामान में बशक्षा व्य स्था सिंस्कृती की अपेक्षा सभ्यताबनसॎठ अबधक हैं अथाात  तामान बशक्षा ब चारप्रधान   मू्यप्रधान की अपेक्षा ज्ञानाजान प्रधान
               हैं। मेरा स्क ु ल बशक्षा   सिंस्कृती का तालमेल कहा जाता हैं। इसके  बलए मेरे सहयोगी अध्यापक, छात्र, पालक तथा प्रशिंसा करनेसे न थकने ाले
               अबधकारी  गा हैं।

                       पाठशाला में सभी त्योहार   उत्स  अध्ययन-अध्यापन को ध्यान में रखते हुए मनाए जाते हैं। बजससे छात्रों की उपबस्थती बढ़ने लगी हैं।
               पालकों ने भी पाठशाला की तरफ अपना ध्यान ज्यादा लगा बदया हैं। अपने माता बपता को स्क ू ल क े कायाकम में शाबमल देखकर बच्चों का उत्साह
               बद्वगुणीत होता हैं। और  ह ज्यादा मेहनत से पढाई करते हैं। बशक्षा काया ए िं सिंस्कृती से ही समाज को नई बदशा बमलने क े साथ ब कास ए िं उन्नबत
               की ओर जाने का मागा सरलतापू ाक उपलदध हो सकता हैं।

                       प्रधानाध्यापक एक प्रमुख भूबमका बनभाता हैं। जो अपने बशक्षकों और कमाचाररयों को मागादशान करते हुए आगे चलने का योग्य मागा
               बताने का काया करता हैं। नेता का अथा, हुक ु म चलाना नहीं हैं। ब्की अपने सहयोगी को ब जय की और ले जाने ाला मागादशाक होता हैं। जो
               अपने आप में एक आदशा होता हैं। नेता  ो हैं जो अपने उत्तरदाबयत्  को याद रखते हुए अपने ध्येय की ओर सबको एक-साथ लेकर बनरिंतर चलते
               रहता हैं। यशस् ी मागापर चलते समय हर रास्ते में आने ाली हर कठीनाई, समस्या या चुनौबतयों को पार करने ाला का काम नेता करता हैं।
               पाठशाला का नेता उसका प्रधानाध्यापक ही होता हैं। इसबलए कहा जाता है की ‘यथा राजा तथा प्रजा’ यह पिंक्ती के  अनुसार जैसे प्रधानाध्यापक  ैसे
               उसकी पाठशाला। इसबलए एक प्रधानाध्यापक को पाठशाला व्य स्थापन समझ आ गया तो  ह एक यशस् ी प्रधानाध्यापक  हैं।

                       मुझे मेरे स्क ू ल में जो जो कबठनाई आई, उन कबठनाईओिं को बनयोजनबध्द पध्दतीसे सबकी सहाय्यतासे सुलझाकर मागा बनकाला गया।








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